Galib ki Shayari:- Mirza Ghalib ka जन्म 27 दिसंबर 1797 को आगरा में हुवा था। मिर्जा गालिब के पिता का नाम मिर्ज़ा अब्दुल्ला बेग ख़ां, तथा माता का नाम इज्जत-उत-निसा बेगम था। मिर्ज़ा अब्दुल्ला बेग ख़ां, अपने तख़ल्लुस ग़ालिब अर्थात महान शायर थे। ऐसी लिए गालिब को भारत और पाकिस्तान में कवि के नाम से जाना जाता हैं। आज उनके निधन के पश्चात भी उनके द्वारा लिखी गई कविताएं, शायरीय, लेख, शेर इत्यादि पूरे दुनियां भर में प्रसिद्ध हैं।
प्रसिद गालिब की याद में आज हमने आपके लिए galib ki shayari की post लेकर आए, हैं जिसमे कुछ प्रसिद्ध शायरियां है, जो उनके द्वारा लिखी गई थी। हमारी पोस्ट की शायरियां अगर आपको पसंद आए तो हमे commant करे हम आपके लिए ऐसे भी अच्छी शायरियां लेकर आए।
Galib ki Shayari
यों ही उदास है दिल बेकरार थोड़ी है,
मुझे किसी का कोई इंतज़ार थोड़ी है.।
आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए,
साहब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था।
हाथों की लकीरों पे मत जा ऐ गालिब,
नसीब उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होते।
शहरे वफा में धूप का साथी नहीं कोई
सूरज सरों पर आया तो साये भी घट गए
बे-वजह नहीं रोता इश्क़ में कोई ग़ालिब
जिसे खुद से बढ़ कर चाहो वो रूलाता ज़रूर है
Galib Ki Shayari In Hindi Sad
हाथों की लकीरों पे मत जा ऐ गालिब
नसीब उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होते
ये न थी हमारी क़िस्मत के विसाले यार होता
अगर और जीते रहते यही इन्तज़ार होता
सबने पहना था बड़े शौक से कागज़ का लिबास
जिस कदर लोग थे बारिश में नहाने वाले
हासिल से हाथ धो बैठ ऐ आरज़ू-ख़िरामी
दिल जोश-ए-गिर्या में है डूबी हुई असामी
सबर का मेरे अभी इम्तेहान जारी है,
वक़्त वो भी आएगा जब खुदा खुद कहेगा,
चल अब तेरी बारी है
Galib Quotes In Hindi
हालत कह रहे है मुलाकात मुमकिन नहीं,
उम्मीद कह रही है थोड़ा इंतज़ार कर।
जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा,
कुरेदते हो जो अब राख जुस्तजू क्या है।
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक,
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक।
नज़र लगे न कहीं उसके दस्त-ओ-बाज़ू को,
ये लोग क्यूँ मेरे ज़ख़्म ए जिगर को देखते हैं..!!
ये न थी हमारी किस्मत कि विसाल-ए-यार होता,
अगर और जीते रहते यही इंतज़ार होता..!!
Galib Ki 2 line Shayari
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना,
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना..!!
ज़िंदगी अपनी जब इस शक्ल से गुज़री,
हम भी क्या याद करेंगे कि ख़ुदा रखते थे।
मेरी ज़िन्दगी है अज़ीज़ तर इसी वस्ती मेरे
हम सफर मुझे क़तरा क़तरा पीला
मंज़िल मिलेगी भटक कर ही सही
गुमराह तो वो हैं जो घर से निकले ही नहीं।
मोहब्बत में नही फर्क जीने और मरने का उसी
को देखकर जीते है जिस ‘काफ़िर’ पे दम निकले
कुछ दर्द अगर सीने में है ग़ालिब
तो मोहब्बत में तड़पना गलत नही.!!
कुछ तो तन्हाई की रातों में सहारा होता
तुम न होते न सही ज़िक्र तुम्हारा होता !
Galib ke sher In Hindi
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है !
मुहब्बत में उनकी अना का पास रखते हैं
हम जानकर अक्सर उन्हें नाराज़ रखते हैं !
गुज़रे हुए लम्हों
को मैं इक बार तो
जी लूँ कुछ ख्वाब तेरी
याद दिलाने के लिए हैं !
अर्ज़-ए-नियाज़-ए
इश्क़ के क़ाबिल नहीं
रहा जिस दिल पे
नाज़ था मुझे वो दिल नहीं रहा !
नज़र लगे न कही
उसके दस्त-ओ-बाज़ू को
ये लोग क्यूँ मेरे ज़ख़्मे
जिगर को देखते है !
Mirza Ghalib ki Shayari
इश्क़ ने ‘ग़ालिब’ निकम्मा कर दिया
वरना हम भी आदमी थे काम के
#मिर्ज़ा ग़ालिब
रोने से और इश्क़ में बे-बाक हो गए
धोए गए हम इतने कि बस पाक हो गए
#मिर्ज़ा ग़ालिब
आया है मुझे बेकशी इश्क़ पे रोना ग़ालिब
किस का घर जलाएगा सैलाब भला मेरे बाद
#मिर्ज़ा ग़ालिब
इश्क़ से तबियत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया
दर्द की दवा पाई दर्द बे-दवा पाया
#मिर्ज़ा ग़ालिब
बुलबुल के कारोबार पे हैं ख़ंदा-हा-ए-गुल
कहते हैं जिस को इश्क़ ख़लल है दिमाग़ का
ख़ंदा-हा-ए-गुल = फूलों की हंसी
#मिर्ज़ा ग़ालिब
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